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Médecine
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आधुनिक भारत का इतिहास यह पुस्तक इतिहास के उस काल का वर्णन प्रस्तुत करती है जिसे ब्रिटिश भारत के रूप…
में जाना जाता है। यह वर्णन मुख्य रूप से भारत में राष्ट्रवाद और उपनिवेशवाद पर मेरे शोध और इस काल पर प्रकाशित विभिन्न ग्रंथों पर आधारित है। पुरातन साम्राज्यवाद और राष्ट्रवाद के इतिहासलेखन की चुनौती के साथ पुस्तक ऐतिहासिक-राजनैतिक वर्णन से आगे बढ़कर इतिहास, राजनीति, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और अन्य संबंधित विषयों के पारस्परिक अंतर्संबंधों पर ध्यान केंद्रित करती है। पुस्तक में व्यापक सामाजिक बलों, आंदोलनों, संस्थानों और व्यक्तियों का अध्ययन इस उद्देश्य के साथ किया गया कि कुछ घटनाएं क्यों घटित हुई और इस तरह की घटनाओं के परिणामों का वर्णन कालक्रमानुसार किया गया है। पुस्तक में अठारहवीं सदी में भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों के आधार पर बताया गया है कि क्यों भारत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बाद में ब्रिटिश शासन के अधीन हो गया। इसमें भारत पर ब्रिटिश शासन के राजनैतिक, प्रशासनिक और आर्थिक प्रभावों का सविस्तर वर्णन शामिल है। अंतिम पांच अध्याय भारत में राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े हैं, जिनमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गठन से लेकर भारत द्वारा स्वतंत्रता की प्राप्ति का वर्णन है। राष्ट्रीय आंदोलन की नरमपंथी, गरमपंथी और क्रांतिकारी जैसी विभिन्न विचारधाराओं का विस्तृत विवेचन किया गया है।
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Asie (histoire), Politique et gouvernement, Essais et documents généraux
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मध्यकालीन भारत राजनीति, समाज और संस्कृति यह पुस्तक इतिहास के काल का वर्णन प्रस्तुत करती है, प्रस्तुत पुस्तक में विस्तार…
से इन अंतरों का पता लगाने की कोशिश किए बगैर आठवीं सदी से सत्रहवीं सदी की समाप्ति तक भारत के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रवृत्तियों के अभ्युदय के अध्ययन का प्रयास किया गया है । इन सभी पहलुओं को एक खंड में समायोजित करना कठिन काम था । इस कार्य के पीछे ध्येय यह रहा है कि पिछले चार दशकों में इतिहासकारों द्वारा मध्यकालीन भारतीय इतिहास को एक नई दिशा देने के प्रयासों को एक जगह लाने से इसके प्रति आम लोगों की दिलचस्पी बढ़ेगी । साथ ही, मध्यकालीन भारत में राज्य की प्रकृति, लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता और उस अवधि में आर्थिक विकास की प्रवृत्ति को लेकर हाल में उठे विवादों को सही परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकेगा । इस पुस्तक में यह दर्शाया गया है कि बड़े साम्राज्यों के अभ्युदय और फिर छोटे खंडों में विभाजन और एकीकरण का मतलब हमेशा आर्थिक निष्क्रियता और सांस्कृतिक ह्रास ही नहीं रहा है, भारतीय इतिहास के मध्यकाल की तुलना अकसर तुर्क और मुगल शासनकाल से की जाती है जिसका अर्थ है सामाजिक कारकों की जगह राजनीतिक कारकों को प्राथमिकता देना । यह अवधारणा इस मान्यता पर भी आधारित है कि पिछली कई सदियों के दौरान भारतीय समाज में बहुत थोड़ा बदलाव आया है । इतिहासकारों ने भारत में जनजातीय समाज के क्षेत्रीय राज्यों में तब्दील होने का मूल्यांकन किया है ।